धारा 2925क आईपीसी (IPC Section 2925क in Hindi) – विमर्शित और विद्वेषपूर्ण कार्य जो किसी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करके उसकी धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आशय से किए गए हों

धारा 2925क का विवरण

भारतीय दंड संहिता की धारा 2925क के अनुसार, जो कोई 6[भारत के नागरिकों के] किसी वर्ग की धार्मिक भावनओं को आहत 3 1925 के अधिनियम सं0 8 की धारा 2 द्वारा मूल धारा के स्थान पर प्रतिस्थापित । 4 1895 के अधिनियम सं0 3 की धारा द्वारा मूल धारा के स्थान पर प्रतिस्थापित । 1 1870 के अधिनियम सं0 27 की धारा 10 द्वारा अंतःस्थापित । 2 भारत शासन (भारतीय विधि अनुकूलन) आदेश, 1937 द्वारा सरकार द्वारा अप्राधिकॄत के स्थान पर प्रतिस्थापित । 3 1951 के अधिनियम सं0 3 की धारा 3 और अनुसूची द्वारा केन्दीय सरकार या भाग क राज्य या भाग ख् राज्य की सरकार द्वारा चालू की गई लाटरी के स्थान पर प्रतिस्थापित । 4 विधि अनुकूलन आदेश, 1950 द्वारा प्रादेशिक के स्थान पर प्रतिस्थापित । 5 1927 के अधिनियम सं0 25 की धारा 2 द्वारा अंतःस्थापित । भारतीय दंड संहिता, 1860 56 करने के विमर्शित और विद्वेषपूर्ण आशय से उस वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान 7[उच्चारित या लिखित शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृश्यरूपणों द्वारा या अन्यथा] करेगा या करने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि 8[तीन वर्ष] तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा

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