धारा 193 आईपीसी (IPC Section 193 in Hindi) – मिथ्या साक्ष्य के लिए दंड

धारा 193 का विवरण

भारतीय दंड संहिता की धारा 193 के अनुसार, जो भी कोई साशय किसी न्यायिक कार्यवाही के किसी प्रक्रम में झूठा साक्ष्य देगा या किसी न्यायिक कार्यवाही के किसी प्रक्रम में उपयोग किए जाने के प्रयोजन से झूठा साक्ष्य गढ़ेगा, तो उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास, जिसे सात वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, और साथ ही वह आर्थिक दण्ड के लिए भी उत्तरदायी होगा; और जो भी कोई किसी अन्य मामले में साशय झूठा साक्ष्य देगा या गढ़ेगा, तो उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास, जिसे तीन वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, और साथ ही वह आर्थिक दण्ड के लिए भी उत्तरदायी होगा। स्पष्टीकरण 1–सेना न्यायालय के समक्ष विचारणीय न्यायिक कार्यवाही है। स्पष्टीकरण 2–न्यायालय के समक्ष कार्यवाही प्रारम्भ होने के पूर्व, जो विधि द्वारा निर्दिष्ट अन्वेषण होता है वह न्यायिक कार्यवाही का एक प्रक्रम है, चाहे वह अन्वेषण किसी न्यायालय के सामने न भी हो।   स्पष्टीकरण 3–न्यायालय द्वारा विधि के अनुसार निर्दिष्ट और न्यायालय के प्राधिकार के अधीन संचालित अन्वेषण न्यायिक कार्यवाही का एक प्रक्रम है, चाहे वह अन्वेषण किसी न्यायालय के सामने न भी हो। लागू अपराध 1. न्यायिक कार्यवाही में झूठा साक्ष्य देना या गढ़ना। सजा – सात वर्ष कारावास, और आर्थिक दण्ड। यह अपराध जमानती, गैर-संज्ञेय है तथा प्रथम श्रेणी के न्यायधीश द्वारा विचारणीय है। 2. किसी अन्य मामले में झूठा साक्ष्य देना या गढ़ना। सजा – तीन वर्ष कारावास, और आर्थिक दण्ड। यह अपराध जमानती, गैर-संज्ञेय है तथा किसी भी न्यायधीश द्वारा विचारणीय है।   यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है।

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