धारा 241 का विवरण
भारतीय दंड संहिता की धारा 241 के अनुसार, जो कोई किसी दूसरे व्यक्ति को कोई ऐसा कूटकॄत सिक्का, जिसका कूटकॄत होना वह जानता हो, किन्तु जिसका वह उस समय, जब उसने उसे अपने कब्जे में लिया, कूटकॄत होना नहीं जानता था, असली सिक्के के रूप में परिदान करेगा, या किसी दूसरे व्यक्ति को उसे असली सिक्के के रूप में लेने के लिए उत्प्रेरित करने का प्रयत्न 1 1955 के अधिनियम सं0 26 की धारा 117 और अनुसूची द्वारा (1-1-1956 से) आजीवन निर्वासन के स्थान पर प्रतिस्थापित । 2 ब्रिटिश भारत शब्द अनुक्रमशः भारतीय स्वतंत्रता (केन्द्रीय अधिनियम तथा अध्यादेश अनुकूलन) आदेश, 1948, विधि अनुकूलन आदेश, 1950 और 1951 के अधिनियम सं0 3 को धारा 3 और अनुसूची द्वारा प्रतिस्थापित किए गए हैं । 3 विधि अनुकूलन आदेश, 1950 द्वारा क्वीन के सिक्के के स्थान पर प्रतिस्थापित । 4 1955 के अधिनियम सं0 26 की धारा 117 और अनुसूची द्वारा (1-1-1956 से) आजीवन निर्वासन के स्थान पर प्रतिस्थापित । भारतीय दंड संहिता, 1860 48 करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या इतने जुर्माने से, जो कूटकॄत सिक्के के मूल्य के दस गुने तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडित किया जाएगा । दृष्टांत क, एक सिक्काकार, अपने सह-अपराधी ख को कूटकॄत कम्पनी का रुपए चलाने के लिए परिदत्त करता है, ख उन रुपयों को सिक्का चलाने वाले एक दूसरे व्यक्ति ग को बेच देता है, जो उन्हें कूटकॄत जानते हुए खरीदता है । ग उन रुपयों को घ को, जो उनको कूटकॄत न जानते हुए प्राप्त करता है, माल के बदले दे देता है । घ को रुपया प्राप्त होने के पश्चात्् यह पता चलता है कि वे रुपए कूटकॄत हैं, और वह उनको इस प्रकार चलाता है, मानो वे असली हों । यहां, घ केवल इस धारा के अधीन दंडनीय है, किन्तु ख और ग, यथास्थिति, धारा 239 या 240 के अधीन दंडनीय हैं ।CLICK HERE FOR FREE LEGAL ADVICE. मुफ्त कानूनी सलाह लेने के लिए यहाँ क्लिक करें ।