धारा 116 का विवरण
भारतीय दंड संहिता की धारा 116 के अनुसार, जो भी कोई कारावास से दण्डनीय अपराध का दुष्प्रेरण करेगा यदि वह अपराध उस दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप न किया जाए और ऐसे दुष्प्रेरण के दण्ड के लिए कोई स्पष्ट प्रावधान इस संहिता में नहीं किया गया है, तो उसे उस अपराध के लिए उपबंधित किसी एक अवधि के लिए कारावास, जिसकी अवधि ऐसे कारावास की दीर्घतम अवधि की एक चौथाई तक बढ़ायी जा सकती है, या उस अपराध के लिए उपबन्धित आर्थिक दण्ड, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा; यदि दुष्प्रेरक या दुष्प्रेरित व्यक्ति ऐसा लोक सेवक है, जिसका कर्तव्य अपराध निवारित करना हो–और यदि दुष्प्रेरक या दुष्प्रेरित व्यक्ति ऐसा लोक सेवक हो, जिसका कर्तव्य ऐसे अपराध के किए जाने को निवारित करना हो, तो दुष्प्रेरक को उस अपराध के लिए उपबंधित किसी एक अवधि के लिए कारावास, जिसकी अवधि ऐसे कारावास की दीर्घतम अवधि की आधी अवधि तक बढ़ायी जा सकती है, या उस अपराध के लिए उपबन्धित आर्थिक दण्ड, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा। लागू अपराध 1. कारावास से दण्डनीय अपराध का दुष्प्रेरण–यदि दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप अपराध न किया जाए। सजा – अपराध के लिए दीर्घतम अवधि की एक चौथाई अवधि के लिए कारावास या आर्थिक दण्ड या दोनों। जमानत, संज्ञान और अदालती कार्रवाई, किए गये अपराध अनुसार होगी। 2. यदि दुष्प्रेरक या दुष्प्रेरित व्यक्ति ऐसा लोक सेवक है जिसका कर्तव्य अपराध निवारित करना हो। सजा – दीर्घतम अवधि की आधी अवधि के लिए कारावास या आर्थिक दण्ड या दोनों। जमानत, संज्ञान और अदालती कार्रवाई, किए गये अपराध अनुसार होगी। यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है।CLICK HERE FOR FREE LEGAL ADVICE. मुफ्त कानूनी सलाह लेने के लिए यहाँ क्लिक करें ।