धारा 115 आईपीसी (IPC Section 115 in Hindi) – मॄत्युदण्ड या आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध का दुष्प्रेरण – यदि दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप अपराध नहीं किया जाता।

धारा 115 का विवरण

भारतीय दंड संहिता की धारा 115 के अनुसार, जो कोई मॄत्युदण्ड या आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध के किए जाने का दुष्प्रेरण करेगा, यदि वह अपराध उस दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप न किया जाए, और ऐसे दुष्प्रेरण के दण्ड के लिए कोई अभिव्यक्त उपबन्ध इस संहिता में नहीं किया गया है, तो उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास जिसे सात वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है से दण्डित किया जाएगा और साथ ही वह आर्थिक दण्ड के लिए भी उत्तरदायी होगा; यदि दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप क्षति करने वाला कार्य किया जाता है – और यदि ऐसा कोई कार्य कर दिया जाए, जिसके लिए दुष्प्रेरक उस दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप दायित्व के अधीन हो और जिससे किसी व्यक्ति को क्षति कारित हो, तो दुष्प्रेरक किसी एक अवधि के लिए कारावास जिसे चौदह वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है से दण्डित किया जाएगा और साथ ही वह आर्थिक दण्ड के लिए भी उत्तरदायी होगा।   लागू अपराध मॄत्युदण्ड या आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध का दुष्प्रेरण, 1. यदि दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप अपराध नहीं किया जाता। सजा – सात वर्ष कारावास + आर्थिक दण्ड। यह अपराध गैर-जमानती, और इसका संज्ञान और अदालती कार्रवाई किए गये अपराध अनुसार होगी। 2. यदि दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप क्षति करने वाला कार्य किया जाता है। सजा – चौदह वर्ष कारावास + आर्थिक दण्ड। यह अपराध गैर-जमानती, और इसका संज्ञान और अदालती कार्रवाई किए गये अपराध अनुसार होगी।   यह समझौता करने योग्य नहीं है।

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